महिला दिवस स्पेशल: इन 10 महिलाओं ने भारतीय खेलों के इतिहास में बनाई अपनी अलग पहचान
भारत सरकार ने महिला सम्मान और उनके विकास के लिए देश भर में बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का अभियान चलाया था। जिसके बाद अब इस कड़ी में सरकार को एक और लाइन 'बेटी खिलाओ' भी शायद जोड़ लेना चाहिए। जो इस पंक्ति को पूरा करता है। यानी इसमें बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओ के साथ इस महिला दिवस पर सरकार को 'बेटी खिलाओं' का नारा भी देश भर में गुंजायमान करना चाहिए। क्योंकि भारतीय महिलाओं ने हर एक क्षेत्र में खुद को साबित किया है। जिससे खेल भी छूता नहीं रहा।
खेलों में जैसे ही हम भारतीय महिलाओं का जिक्र करते हैं। हमारे दिमाग में सबसे पहले पीवी सिंधू, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा जैसे नाम आते हैं। लेकिन इनके अलावा साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, दीपिका पल्लीकल, जोशना चिन्नप्पा, डोला बनर्जी, अंजू बॉबी जॉर्ज, कर्णम मल्लेश्वरी, कुंजरानी देवी, एमसी मैरीकॉम, कोनेरु हंपी, हिना सिद्धू, अंजुम चोपड़ा, मिताली राज, झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत कौर, पीटी ऊषा, कृष्णा पूनिया, ज्योर्तिमय सिकदर, साईखोम मीराबाई चानू, मनु भाकर, मनिका बत्रा, अपूर्वी चंदेला, स्वप्ना बर्मन, हिमा दास, दुति चंद सहित कई अन्य महिलाओं ने खेलों की दुनिया में देश का नाम रोशन किया है।
इन सभी नामों को देख आप सोच रहे होंगे कि भारत जैसे विशाल देश में कई महिलाओं ने अपना नाम खेल में रोशन किया है। लेकिन एक समय था जब महिलाओं को खेलने से इस देश में मना किया जाता था। उस समय में कर्णम मल्लेश्वरी, पीटी ऊषा, और एमसी मैरीकॉम जैसी महिलाओं ने समाज को चुनैती देते हुए खेलों को चुना। जिसके बाद इन लोगों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज ये सभी महिलायें भारतीय खेलों के इतिहास में युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा बनी हुई हैं। इस तरह आज महिला दिवस के ख़ास मौके पर हम आपको ही ऐसी कुछ महिला खिलाड़ियों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने तमाम बाधाओं को पार करते खेल जगत में कई कीर्तिमान अपने नाम किए।
अंजू बॉबी जॉर्ज
भारत को एथलेटिक्स जैसे मेहनती खेल में पदक दिलाने वाली पहली महिला अंजू बॉबी जॉर्ज थी। अंजू ने सितम्बर 2003, पेरिस में हुए वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनसिप लंबी कूद में कांस्य पदक जीत कर भारत को पहली बार विश्वस्तर पर एथलेटिक्स में पदक दिलाया था। 2004 में अंजू बॉबी जॉर्ज को 'राजीव गाँधी खेल रत्न' सम्मान प्रदान किया गया।
पी. टी. उषा
पी। टी। उषा का पूरा नाम पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा है। उषा को एथलेटिक्स की रानी कहा जाता है। इन्होने एथलेटिक्स में पदकों का शतक यानी भारत के लिए 101 मैडल जीते हैं। वर्तमान में वे एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट मानी जाती हैं। पी। टी। उषा को उड़न परी भी कहा जाता है। इन्हें पद्मश्री और अर्जुन पुरूस्कार भी मिल चुका है।
कर्णम मल्लेश्वरी
कर्णम मल्लेश्वरी भारत की व्यक्तिगत पहली महिला ओलंपिक पदक विजेता हैं। साल 2000 सिडनी ओलम्पिक में मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग की 69 किग्रा वर्ग प्रतिस्पर्धा में कांस्य जीता और ओलंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली वो देश की पहली महिला बन गई। इतना ही नहीं 1993 में मल्लेश्वरी ने विश्व चैम्पियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया और उसके बाद 1994 और 1995 में 54 किग्रा डिवीजन में विश्व खिताब की एक श्रृंखला के साथ, 1996 में फिर से तीसरे स्थान पर रहीं। उन्होंने 1994 और 1998 के एशियाई खेलों में दो सिल्वर भी हासिल किए, और 1999 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
मेरीकॉम
मैरी कॉम भारतीय महिला मुक्केबाज मैरी कॉम ओलंपिंक 2012 में कांस्य पदक जीतकर लंदन में भी भारत को मुस्कुराने का मौका दिया। पहली बार भारतीय बॉक्सर महिला यहां तक पहुंची थी इसके अलावा वे 5 बार वर्ल्ड चैम्पियनशीप जीत चुकी हैं। मेरी ने अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत 18 साल की उम्र में ही कर दी थी। जिसके बाद से आज तक बॉक्सिंग रिंग में मैरिकॉम के मुक्के जारी है और देश को आगामी टोक्यों 2020 ओलंपिक में उनसे काफी उम्मीदें हैं।
सानिया मिर्जा
सानिया अब तक की भारत की सबसे सफल और शीर्ष पर कायम पहली महिला टेनिस खिलाड़ी है। सानिया ने 6 साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू किया था। शुरुआत में सानिया अपने आप ही टेनिस खेला करती थीं। सानिया मिर्जा को वर्ष 2004 में बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें 2005 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2005 के अंत में उनकी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग 42 हो चुकी थी जो किसी भी भारतीय टेनिस खिलाड़ी के लिए सबसे ज्यादा थी। 2009 में वह भारत की तरफ से ग्रैंड स्लैम जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं।
दूती चंद
दूती चंद भारत की पहली महिला समलैंगिक एथलीट हैं। जिन्होंने ट्रैक में अपनी स्पीड से सभी का दिल जीता है। हाल ही में उन्होंने पूरी दुनिया के सामने अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा कि वो पिछले कुछ वर्षों से अपनी गृहनगर की एक लड़की के साथ रिश्ते में हैं यानी समलैंगिक हैं। जिसे बाद से वो चर्चा का विषय बनी हुई हैं। दूती ने साल 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियन गेम्स में भारत के लिए 100 मीटर व 200 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीता था। वो मुख्य तौर पर 100 मीटर, 200 मीटर व चार गुणा 100 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेती हैं। इस साल टोक्यो ओलम्पिक के लिए देश को दूती से काफी उम्मीदें हैं जिसके लिए वो कड़ी मेहनत करने में जुटी हुई हैं।
साइना नेहवाल
सायना नेहवाल भारतीय बैडमिंटन खिलाडी है। वर्तमान में वह दुनिया की सबसे अच्छी महिला बैडमिंटन खिलाडी है तथा इस मुकाम तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला है। ओलंपिक्स खेलो में बैडमिंटन में मेडल जीतने वाली वह पहली भारतीय है। सायना ने 2015 की BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर जीता था और ऐसा करने वाली वह पहली महिला बनी थी।
पी. वी. सिन्धु
साइना नेहवाल के बाद देश को रियों ओलंपिक 2016 में बैडमिंटन में सिल्वर पदक दिलाने वाली पी। वी। सिन्धु पहली महिला हैं। इतना ही उन्होंने पिछले साल 2019 में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर पूरे देश में अपने नाम का डंका बजवा दिया था। जिसके बाद से सभी सिंधु के नाम से वाकिफ है। इस तरह दमदार खेल के चलते सभी को आगामी 2020 टोक्यो ओलंपिक में सिंधु से 'सुनहरी' उम्मीदें यानी गोल्ड मेडल जीतने की उम्मीदें हैं।
झूलन गोस्वामी
भारतीय महिला क्रिकेट के उत्थान में भारत की पूर्व महिला तेज गेंदबाज यानि 'नदिया एक्सप्रेस' के नाम से मशहूर झूलन गोस्वामी का बड़ा योगदान है। सितंबर 2007 में इन्हें महिला क्रिकेट में विश्व को सबसे तेज गेंदबाज घोषित किया गया था। झूलन की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा है जो विश्व महिला क्रिकेट में सर्वाधिक है। झूलन ने अपना पहला टेस्ट मैच लखनऊ में इंग्लैंड की टीम के विरुद्ध 2002 में खेला था तब वह केवल 18 साल की थी। इस तरह 2007 तक 8 टेस्ट मैच खेले जिसमें 33 विकेट हासिल किए झूलन कभी भी विकेट लेने में पीछे नहीं रही। झूलन कहती हैं कि ज्यादातर लोग नहीं जानते कि “महिलाएं भी क्रिकेट खेलती है लेकिन मीडिया के कवरेज के बाद भारत में महिला क्रिकेट को भी जाना गया।"
दीपा कर्माकर
दीपा कर्माकर ने 2016 रियो ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। किसी भी ओलंपिक में प्रतिभाग करने वाली वे पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट हैं, और पिछले 52 वर्षों में ऐसा करने वाली वे प्रथम भारतीय, पुरुष अथवा महिला, जिम्नास्ट हैं। दीपा जब 6 साल की थी, तभी से उसके पिता ने सोच लिया था कि वो इसे जिम्नास्ट बनाएँगे। लेकिन सपाट पैरों के कारण एथलीट के लिए पैर जमाना, भागना या कूदना आसान नहीं होता है। जिसके बावजूद दीपा ने इन चुनौतियों को पार करते हुए अपनी देश में अलग पहचान बनाई।
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