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शरीर को डिटॉक्स करने के साथ जोड़ों में दर्द से भी राहत दिलाती है मिट्टी चिकित्सा

2-3 फीट नीचे जमीन से निकाली गई मिट्टी को ही चिकित्सीय प्रयोग में लिया जाता है। पहले धूप में सुखाते भी हैं। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार शरीर पंचमहाभूतों से मिलकर बना हुआ है। जब इनसे मिलकर ही शरीर बना है तो जब कोई भी शारीरिक एवं मानसिक विकृति आती है तो उसके उपचार के लिए इन्हीं महा पंचभूतों से उपचार करना प्राकृतिक उपचार कहलाता है।

 

त्वचा रोगों में
विभिन्न प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों के लिए मिट्टी को पतला पेस्ट बनाकर पूरे शरीर पर या फिर जहां त्वचा पर एलर्जी है, वहां लगाएं। मिट्टी के साथ नीम की चटनी व हल्दी मिलाने पर यह त्वचा की एलर्जी सोरायसिस एग्जिमा में अत्यंत लाभकारी है।

 

दीमक वाली मिट्टी भी उपयोगी
काली या मुल्तानी मिट्टी में सफेद चंदन पाउडर मिलाकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे के मुंहासे-फोड़े-फुंसी-दाग-धब्बे दूर होते हैं। दीमक की मिट्टी अच्छे से साफ करके उसमें पानी और गुलाब जल मिलाकर चेहरे पर लगाने से झाइयां एवं झुर्रियों में राहत मिलती है।

 

ठंडी पट्टी का उपयोग
मिट्टी की पट्टियों को ठंडी एवं गर्म पट्टी दो तरह से इस्तेमाल होता है। मिट्टी को ठंडे पानी के साथ 8 घंटे तक भिगोने के बाद पट्टियां बनाकर माथे, पेट, आंखों, रीढ़ की हड्डी आदि पर लगाएं। ये शरीर को डिटॉक्स करने का काम करती हैं। शरीर की गर्मी भी दूर होती है।

 

गर्म पट्टी के लाभ
मिट्टी को पानी के साथ गर्म करके पट्टी जहां दर्द है, उस हिस्से पर लगाने से दर्द निवारक का काम करती है जैसे गर्म मिट्टी की पट्टी घुटनों, एड़ी, कोहनी, कलाई, कंधे, गर्दन एवं कमरदर्द के लिए लाभकारी होती है। इसके पतले घोल से मालिश भी कर सकते हैं।

 

सर्दी-जुकाम और अस्थमा रोगी इनसे बचें
मिट्टी साफ-सुथरी होनी चाहिए। 3 से 4 फीट नीचे से निकाली जाती है। चिकित्सकीय उपयोग के पहले मिट्टी को अच्छे से धूप में सुखाकर छान लें। एक बार भिगोई मिट्टी का दोबारा उपयोग नहीं होता है। सर्दी जुकाम, अस्थमा व श्वांस संबंधी समस्याओं में मिट्टी का लेप या ठंडी मिट्टी की पट्टी नहीं लगाई जानी चाहिए।



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