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लकवे के बाद जीवन को आसान बनाते नए कैलिपर्स

डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य है कि 2030 तक हर व्यक्ति को जरूरत के सपोर्ट मिल जाएं। इनमें पोलियो, ट्रॉमा पीड़ितों के लिए कैलिपर्स, डायबिटीज या दुर्घटना से पैर गंवाने वालों के लिए जयपुर फुट हैं। इसे असेस्टिव टेक्नोलॉजी कहते हैं।

समय के साथ हुए हैं बदलाव

कैलिपर्स . (ऑर्थोसेसिस) का उपयोग वर्षों से होता आ रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें काफी बदलाव हुए हैं। पहले के कैलिपर्स काफी भारी (वजन 3.5 किग्रा) और उबाऊ होते थे। पैर मोड़ने में परेशानी होती थी। एक ही काला जूता पहनना पड़ता था। दूर से ही कैलिपर्स दिखता था। इसलिए लोग इसे नहीं पहनाना चाहते थे। लेकिन नए कैलिपर्स सुंदर और हल्के होते हैं। इसके ऊपर से पैंट और पसंद के जूते भी पहन सकते हैं।

इनमें भी मददगार ये सपोर्ट्स

जो बच्चे बार-बार गिर जाते, उन्हें चोट लग जाती है। मानसिक रोगी बच्चे जो जमीन या दीवार पर सिर मारते हैं, उनके लिए विशेष हल्के हेलमेट होते हैं। इसी तरह लकवा, हैमरेज, रीढ़ की हड्डी में संक्रमण या चोट, नर्व्स इंजरी, जन्मजात विकृति आदि के लिए भी मॉडर्न सपोटर्स हैं। इसके अलावा कई फ्रेक्चर होने पर देरी से जुड़ने या जुड़ने में परेशानी होने की स्थिति में भी यह बेहद उपयोगी होते हैं। देश में पोलियो खत्म हो गया है, लेकिन जो पहले के मामले हैं उनमें से मात्र 10% को ही जरूरत अनुसार सपोटर्स मिल रहे हैं। गंभीर बीमारी या चोट के बाद जरूरत के सपोर्ट्स देकर व्यक्ति या मरीज के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। इसको लेकर लोगों में जागरूकता होनी चाहिए।

डायबिटीज-एक्सीडेंट में भी उपयोगी जयपुर फुट

जयपुर फुट का उपयोग पहले किसी हादसे में पैर गंवाने वाले को ही लगाया जाता था। पर अब एक्सीडेंट के साथ डायबिटीज और अन्य कारणों काटने की स्थिति में भी अधिक जरूरत पड़ रही है। ये अब बहुत हल्के, मजबूत सस्ते और सुंदर भी बन रहे हैं।



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