क्या अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ेगी 'प्रवासी मजदूरों' की 'घर-वापसी' ?
नई दिल्ली: लॉकडाउन ( Corona Lockdown ) लागू हुए आज पूरे 2 महीने बीत गए । इन 2 महीनों में कोरोनावायरस के बाद में अगर कोई शब्द सबसे ज्यादा बार सुना और बोला गया है तो वो है प्रवासी श्रमिक ( Migrant Labour ) । बिना ट्रेन और बस के पैदल घर के रास्तों पर निकल पड़े इन श्रमिकों के हुजूम ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया ।
खैर सरकारों ने इन मजदूरों को घर पहुंचाने का जिम्मा उठाया। पहले श्रमिक स्पेशल बसें चलाई गई तो वहीं लॉकडाउन 3 में इन मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन ( special train for labours ) चलाने की बात कही गई। अब जबकि रेल मंत्रालय श्रमिकों के लिए ट्रेन चला रहा है तब राजनैतिक पार्टियां रेल मंत्रालय पर पक्षपात करने का आरोप लगा रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ( Udhhav Thakre ) ने रेल मंत्रालय ( Railway Ministry ) पर आवश्यकता से कम ट्रेन चलाने का आरोप लगाया है। ठाकरे के इतना कहने की देर थी कि कभी साथ मिलकर सरकार बनाने वाली पार्टियों के ये नेता आपस में केंद्र बनाम राज्य के ट्विटर वार करते नजर आए। इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ( Yogi Aditynath ) ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि उनके राज्य के मजदूरों को गैर राज्य में काम देने के लिए उनकी इजाजत लेनी होगी । प्रवासी श्रमिकों पर हो रही इस राजनीति के पीछे कहीं कारण आर्थिक हितों से प्रेरित तो नहीं ।
दरअसल NSSO के आंकड़ें के मुताबिक हमारे देश की GDP का 10 फीसदी हिस्सा इन प्रवासी मजदूरों की वजह से आता है। ECONOMIC SURVEY 2017 के मुताबिक आज की तारीख में हमारे देश में लगभग 100 मिलियन लोग टेंपरेरी प्रवासी मजदूरों की तरह काम करते हैं जबकि इंटरनल माइग्रेंट वर्कर्स की संख्या कुल जनसंख्या का 30 फीसदी यानि लगभग 300 मिलियन है। यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि इन वर्कर्स में 70 फीसदी महिलाएं और महज 30 फीसदी पुरूष हैं।
एक दशक में दोगुनी हुई प्रवासी श्रमिकों की संख्या-
देश के किसी भी रोजगार क्षेत्र से ज्यादा इजाफा प्रवासी मजदूरों की संख्या में हुआ है । दूसरे शब्दों में कहें तो 1991-2001 के दौरान जहां 2.4 फीसदी लोग प्रवासी श्रमिक के तौर पर काम करते थे वहीं 2001-2011 जनगणना में इनकी संख्या 4.5 फीसदी यानि लगभग दोगुनी हो चुकी थी। आज हर 10 भारतीयों में से 3 प्रवासी मजदूर के तौर पर अपने घर से दूर काम करता है।
सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर जिन राज्यों से आते हैं उनकी बात करें तो इस लिस्ट में सबसे पहला नाम उत्तर प्रदेश का आता है। 2007-08 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) आंकड़ों के मुताबिक तीन चौथाई से भी ज्यादा प्रवासी मजदूर (78 फीसदी) बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से आते हैं। वहीं जनसंख्या के हिसाब ये लिस्ट कुछ इस प्रकार है.
क्रमांक | किन राज्यों में है सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर- |
1- | उत्तर प्रदेश |
2 | बिहार |
3 | छत्तीसगढ़ |
4 | उत्तराखंड |
5 | झारखंड |
6 | राजस्थान |
7 | मध्यप्रदेश |
8 | आंध्रप्रदेश |
9 | तमिलनाडू |
वहीं अगर बात करें इन मजदूरों के लिए काम करने वाली जगह या राज्यों की तो ये सबसे ज्यादा दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात,हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक है।
इन सेक्टर्स में हैं सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिक –वैसे तो प्रवासी श्रमिक सब्जी के ठेले लगाने से लेकर घरों में साफ-सफाई के कामों तक हर क्षेत्र में फैले हुए हैं लेकिन अगर उद्योग जगत के लिहाज से देखा जाए तो सबसे ज्यादा श्रमिक इन श्रेत्रों में पाए जाते हैं।
- निर्माण उद्योग ( CONSTRUCTION INDUSTRY )- 36.2 प्रतिशत
- कृषि क्षेत्र –20.4 प्रतिशत
- मैनुफैक्चरिंग उद्योग- 15.9 प्रतिशत
ऐसे में इन मजदूरों पर होने वाली राजनीति लाजमी है, क्योंकि ये मजदूर अगर एक बार अपने घर पहुंच जाते हैं तो उनके लॉकडाउन के बाद उद्योग जगत श्रम की समस्या से जूझता नजर आएगा । यानि अर्थव्यवस्था को 2 तरफा मार पड़ने की आशंका है। शायद यही वजह है कि कर्नाटक और तमिलनाडू की सरकारों ने इन मजदूरों को इनके घर भेजने से इंकार कर दिया जबकि दिल्ली सरकार श्रमिकों को रोकने के लिए उन्हें प्रत्यक्ष मदद की घोषणा करते नजर आ रही है। तो वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्य अपने राज्य के श्रमिकों के हों की रक्षा के लिए श्रम कानून में संसोधन करने की बात कह रहे हैं।
श्रमिकों के वापस न आने पर कितना हो सकता है नुकसान- प्रवासी मजदूरों का 90 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ ( ILO ) के मुताबिक लॉकडाउन की वजह से भारत में 42 करोड़ असंगठित क्षेत्र के लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ जाएगा। लेकिन इन मजदूरों के घर बैठने के साथ ही उद्योग जगत पर पड़ने वाले असर को आसानी से समझा जा सकता है। दूसरे शब्दों में लॉकडाउन हटने के बावजूद अर्थिक ***** जाम हो सकता है।
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