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कल्पवास के दौरान इन कड़े नियमों का करना पड़ता है पालन, 12 सालों तक निभाई जाती है परंपरा


प्रयागराज में माघ मेले का शुभारंभ हो गया है। यह मेला माघ पूर्णिमा के दिन तक चलता है पूरे 43 दिनों तक चलने वाला माघ मेले के दौरान कई श्रृद्धालु स्नान करने के लिये आते हैं। पौष माह की पूर्णिमा के दिन यहां पहला स्नान पर्व हुआ और इसी के साथ 1 महीने के लिए कल्पवास भी शुरु हो गया है। कल्पवास का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कल्पवास की परंपरा यहां सालों से चली आ रही है। आइए जानते हैं क्या है कल्पवास और किन नियमों का करना पड़ता है इसमें पालन...

कल्पवास के दौरान इन कड़े नियमों का करना पड़ता है पालन, 12 सालों तक निभाई जाती है परंपरा
क्या होता है कल्पवास
कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चल रही है। मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो प्रयाग में शुरु होने वाले कल्पवास में से एक कल्प का पुण्य मिलता है। कल्प ( जो कि ब्रह्मा जी का एक दिन माना जाता है) इस परंपरा का महत्व हमें वेदों में, महाभारत में, रामचरितमानस के साथ-साथ कई ग्रंथों में भी मिलता है।

कल्पवास हर पीढ़ी चाहे नई हो या पुरानी सब के लिये आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है। इसे हर बार बड़ी संख्या में किया जाता है और कभी इसकी संख्या में कमी भी नहीं आती।

कल्पवास के दौरान इन कड़े नियमों का करना पड़ता है पालन, 12 सालों तक निभाई जाती है परंपरा
नहीं होती उम्र की कोई बाध्यता
कल्पवास की शुरुआत हर साल पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा कर होती है। कल्पवास के लिये उम्र की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन शर्त होती है तो बस यह की कल्पवास वही व्यक्ति कर सकता है जो सांसारिक मोह-माया व जिम्मेदारियों से मुक्त हो। क्योंकि जिम्मेदारियों वाले व्यक्ति के लिये कल्पवास व आत्मनियंत्रण करना थोड़ा कठिन हो सकता है।

कल्पवास के दौरान व्यक्ति को इन नियमों का करना पड़ता है पालन
- कल्पवास की शुरुआत करने के बाद इसे 12 सालों तक जारी रखने की परंपरा निभाई जाती है।
- कल्पवास की शुरुआत के पहले दिन तुलसी और सालिग्राम की स्थापना और पूजन के साथ होती है।
- एक माह तक चलने वाले कल्पवास के दौरान कल्पवासी को जमीन पर सोना चाहिये।
- इस दौरान फलाहार, करना चाहिये या फिर एक समय का आहार या निराहार भी रह सकते हैं।
- कल्पवास करने वाले व्यक्ति को नियमपूर्वक तीन समय गंगा स्नान और यथासंभव भजन-कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला का दर्शन करना चाहिए।


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